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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Saturday 11 August 2012

भटकते हुए ही सही पर मंजिल तक पहुच ही जाते है

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कुछ अच्छा करने निकलो
तो जाने क्यों लोग हँसी उड़ाते है
हो गए अगर कामयाब
तो जाने क्यों लोग जल जाते है

राह में मुश्किलें आये हज़ार
पर हम तो बढ़ते चले जाते है
लोगो कि परवाह ना कर
सच्चाई का साथ निभाते है

राह में दर्द मिलते है कई
पर हम हर दर्द पर मुस्कुराते है
कोई करे रास्ता रोकने कि कोशिश अगर
तो उसको भी जवाब दे जाते है

दुराचारी अपनी ताकत पर
इतना क्यों इठलाते है
जबकि अंत में रावण कंस और कौरवो
सा ही अंजाम पाते है

सच कि हमेशा जीत होती है
जाने क्यों लोग अक्सर भूल जाते है
जिस मंजिल को पाने कि चाह में हम निकलते है
भटकते हुए ही सही पर मंजिल तक पहुच ही जाते है 

सनम कि रुसवाई

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नम है आँखे मगर मुस्कुरा रहे है हम
घुट खून का पीते है जैसे, पिए जा रहे है गम

जी रहे थे जिसके लिए उसने ही आज धोखा किया
करके वादा वफाओ का हमें रुसवा किया
उनकी बेवफाई का हमने ना गिला किया ना सिकवा किया
छाये है काले बादल जिंदगी में और बदल भी ना रहा ये मौसम

नम है आँखे मगर मुस्कुरा रहे है हम
घुट खून का पीते है जैसे, पिए जा रहे है गम

उनकी यादे हमें रह रहकर तडपाती है
दर्द होता है इतना जैसे जान निकल जाती है
नींद में उसके लौट आने कि ख्वाब तो आती है
मगर हकीकत में तो वो है पत्थर दिल सनम

नम है आँखे मगर मुस्कुरा रहे है हम
घुट खून का पीते है जैसे, पिए जा रहे है गम

आहट जो सुनते है कदमो कि लगता है कि वो आ गए
पर किस्मत को मंज़ूर है कुछ और लो फिर अँधेरा छा गए
आखिर कब तक करू इंतज़ार तेरे लौट आने कि ऐ सनम
घुट घुट के जी रहा हू कुछ तो करो रहम

नम है आँखे मगर मुस्कुरा रहे है हम
घुट खून का पीते है जैसे, पिए जा रहे है गम


जुदाई (Separation)

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तन्हा छोड़ हमें वो जो चली गई
आँखों को मेरे आंसुओ कि सौगात दे गई

कुछ सुहाने पलों को याद कर, मुस्कुरा लेते है हम
आंसुओ कि धारा बहा, भुला लेते है उसके जाने का गम
उसने वादा किया था, हर पल साथ निभाने का
पर न जाने उसने कदम क्यों उठाया दूर जाने का

तन्हा छोड़ हमें वो जो चली गई
आँखों को मेरे आंसुओ कि सौगात दे गई


हम तो जिंदा है उसके यादो के सहारे में
पर वो जा बैठी है उस किनारे में और हम है इस किनारे में
जीने का सपना देखा था जो उसके साथ
पर वक्त बेरहम ने अलग कर दिए हमारे हाथ

तन्हा छोड़ हमें वो जो चली गई
आँखों को मेरे आंसुओ कि सौगात दे गई


उसकी हर एक बात याद आती है
जुदाई उसकी बड़ा तडपाती है
उसके आने का इंतज़ार आज भी है
उससे मिलने को दिल बेकरार आज भी है

तन्हा छोड़ हमें वो जो चली गई
आँखों को मेरे आंसुओ कि सौगात दे गई




Tuesday 7 August 2012

इंसान और शैतान (Man And Devil)

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विवश है आज का हर एक आम इंसान
मौज उड़ा रहा है शैतान
मानवता खो रही अपनी पहचान
जुल्म मिटाने वाला कहा गया वो भगवान

सितमगरो ने कुछ ऐसा कहर ढाया है
रोम रोम में दर्द समाया है
सड़क पर गिरा लहू जुल्म कि कहानी कहती है
भूख से तडपकर जान क्यों निकलती है

सबको खिलाने वाला ही आज दर दर भटक रहा
दर्द सहने कि सीमा पार हुई, पाँव पटक रहा
जिनके मेहनत से महले खड़ा होती है
आज वही एक झोपडी के लिए तरस रहा

कुछ इस कदर लुटा है हमें इन शैतानो ने
जैसे लुटा न गया हो किसी से जमानो में
केवल दर्द कि दास्तान होती है अब पैगामो में
वो आज़ादी पाने कि जूनून कहा गई दीवानों में 

निकली है भीड़ आज लड़ने कुछ गद्दारों से

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काँप रही दीवारे आज जयघोषो के नारों से
निकली है भीड़ आज लड़ने कुछ गद्दारों से

तिरंगा लिए हाथ, टोलियाँ बनाकर
भगत सिंह और सुभाष को दिल में बसाकर
नया भारत बनाने का सपना सजाकर
निकले है बनाने नया इतिहास अपने बलिदानों से

काँप रही दीवारे आज जयघोषो के नारों से
निकली है भीड़ आज लड़ने कुछ गद्दारों से

जनता के कदमो कि आहट सुन कानो से
थर्राता है अब तो दिल सत्ता के दलालो का
समय राह देखता था ऐसे अफसानों का
सिंहासन जब हिलने लगेगी जनता के दहाडो से

काँप रही दीवारे आज जयघोषो के नारों से
निकली है भीड़ आज लड़ने कुछ गद्दारों से

लहू का हर एक कतरा पुकारता है भारत माता कि जय
बढ़े जा रहे है सभी होकर निर्भय
मन में है बस एक ही बात, करनी है दुश्मनों पर विजय
गूंजती है आवाजे आज पहाड़ों से

काँप रही दीवारे आज जयघोषो के नारों से
निकली है भीड़ आज लड़ने कुछ गद्दारों से


देशभक्तों कि गली (Street of Patriots)

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आज चल निकला हू उन गलियों पर
जहाँ जय हिंद और वंदे मातरम का नारा बुलंद होता है
जहाँ देशभक्ति के गीत गाये जाते है
भारत माता में शीश चढ़ाये जाते है

रग रग में बसा होता है देशभक्ति जहाँ
मिलते है जुनूनी लोग यहाँ
जहाँ कटा सिर भी भारत माता कि जय पुकारता है
जहाँ लहू का हर एक कतरा दुश्मन को ललकारता है

हर एक दिल में आग लगी होती है
आज़ादी पाने कि प्यास जगी होती है
यहाँ हर कोई अपने बलिदान को आतुर दिखता है
अपने लहू से इतिहास का पन्ना लिखता है

जहाँ सिर्फ देशभक्ति कि बाते बोली जाती है
हर एक बलिदान को दुश्मनों के कटे सिरों से तोली जाती है
है मकसद जहाँ कि सम्पूर्ण आज़ादी
चाहे देनी पड़े कितनी भी कुर्बानी 

Sunday 22 July 2012

एक भीड़ निकली है सडको पे आज

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एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

हर उम्र दराज के लोग है इसमें
है शब्दों में जोश भरा
सदियों बाद जगे है ये
इतिहास के पन्नों में नया पन्ना जोड़ने
एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

हो गई थी जुल्म कि इन्तहा
रो रोकर बहुत सह लिए
दास्तान-ए-दर्द सुनकर तो रुंह भी कपने लगे
आज खड़े है सड़कों पे अन्याय को जड़ से उखाड़ने
एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

बिगुल तो फूंक चुके है लड़ाई की
अंजाम तक पहचाना अभी बाकी है
मांग रहे है हर एक दर्द का हिसाब
निकले है ये आज अपना भविष्य सुधारने

एक भीड़ निकली है सड़कों पे आज
अपना हक जानने, अपना हक मांगने

शहीद का परिवार (Family of martyr)

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माँ कि नज़रे टिकी थी राह पर
वीर पुत्र के आने के इंतज़ार में
वो आया भी तो तिरंगे में लिपटकर
माँ के आँखों में आँसू भर गया

बाप के कंधो में खेला बड़ा हुआ
आज बाप के कंधो में ही विदा हो चला
रहेगा याद हमेशा लोगो को वो
लो आज एक और वीर शहीद हो गया

जब तक जिया, जिया वो शान से
आज मरने पे भी, शान में न कमी आई
वीरो कि तरह लड़ा, न झुका, न डरा
अपनी अमरता का, लोगो को सन्देश दे गया

बिलखती माँ पुकार रही है, बेटा तू लौट आ
गहरी नींद में सोया है वो, न आएगा कभी
बावरी हो गई बेवा उसकी, कह रही है
मुझको भी साथ ले जाता, अकेले क्यों चला गया 

मै जिंदगी को काटना नहीं, जीना चाहता हू

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जिंदगी समझौतों से भरी होती है मगर
मै जिंदगी को काटना नहीं, जीना चाहता हू

दुनिया का कोई भी कोना अनदेखा न रहे
मै दुनिया के हर कोने कि सैर करना चाहता हू

दूर तक बस पानी ही पानी दिखाई दे
मै ऐसे झील में नाव में बैठ घूमना चाहता हू

देर रात तक मस्ती में डूबी पार्टियां हो
मै ऐसी पार्टियों में मस्ती में नाचना चाहता हू

वैसे तो जिंदगी में मिलती है खुशियाँ हज़ार
मै हर खुशी में ठहाको के साथ हसना चाहता हू

दुनिया में हर जगह कि भोजन कि अलग पहचान होती है
मै दुनिया के हर भोजन का स्वाद लेना चाहता हू

तेज रफ़्तार का अपना एक अलग मज़ा होता है
मै हर तेज रफ़्तार वाली वाहनों में सफर करना चाहता हू 

Friday 20 July 2012

एक चिंगारी (A Spark)

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एक चिंगारी उठी है कहीं पे
फैलना चाह रही है बनके आग
मिटाने आयी है दुश्मनों को
कर देगी उनको सुपुर्देखाक

अभी तो उठ रहा है केवल धुआँ
लपटे निकलना तो अभी बाकी है
घासों से निकल रहा है ये धुआँ
सिंहासनो का जलना अभी बाकी है

बरसो बाद उठी है ये चिंगारी
लेके कई बलिदान
बड़ा भयंकर लगेगी  आग
लेके जायेगी कइयो कि जान 

रौशनी कि तलाश

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तलाशता हू रौशनी मै इस अँधेरी दुनिया में
अब तक तो लगी है बस निराशा हाथ
पर उम्मीदों पर टिकी है ये जहाँ
मै अपनी उम्मीदे कैसे छोड़ दू

जहा भी गया मिला बस अँधेरा
एक हल्का सा उजियारा भी न दिखाई दी
निकल आया हू बहुत दूर उसे ढूंढने
अपने को वापस कैसे मोड़ लू

रौशनी कि बाते सभी करते है मगर
अँधेरे में जीने कि सबको आदत है
रोज देखता हू सपना उसके मिल जाने की
वो हँसी सपना मै कैसे तोड़ दू 

भाग अधर्मी भाग(Run Impious run)

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भाग अधर्मी भाग
जनता के दिलो में लग चुकी है आग

तुने ही लुटा है इनको
तुने ही बांटा है इनको
आखिर कब तक सहते ये अन्याय
मिलाने आ रहे है तुझे खाक
भाग अधर्मी भाग
जनता के दिलो में लग चुकी है आग

गद्दी पे बिठाया तुझको
पर तुने रुलाया सबको
बहुत सह चुके अब
मांगने आ रहे है हर एक दर्द का हिसाब
भाग अधर्मी भाग
जनता के दिलो में लग चुकी है आग

झूठे किये थे तुने वादे
नेक नहीं थे तेरे इरादे
अपनी शक्तियों का किया दुरूपयोग तुने
जनता समझ चुकी है टरइ नियत आज
भाग अधर्मी भाग
जनता के दिलो में लग चुकी है आग 

Tuesday 17 July 2012

आज़ादी के परवाने (Freedom Lovers)

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आज़ादी के परवाने, किसी से नहीं डरा करते
हो अगर बलिदान का वक्त, तो पीछे नहीं हटा करते
रहता है बस एक ही धुन, मुल्क कि आज़ादी
तोड़ देते है इसके लिए, ये सारे पाबन्दी

जनता पुकारती है इन्हें, कहकर शूरवीर
मिटा देते है दुश्मनों को, जैसे हो कोई लकीर
अपना सर्वस्व कर देते है, वतन पर अर्पण
अपनी अंतिम साँस तक, नहीं करते समर्पण

वीरो तरह ही जीते है, वीरो की तरह ही मरते है
अपनी पूरी जिंदगी, वतन के नाम करते है
घर बार सब त्यागकर, अकेले ही रहते है
अपने लहू से वतन का, रुद्राभिषेक करते है

अपनी हथियार उठा, जब करते है ललकार
दुश्मन थर थर कांपता है, और दिखते है लाचार
वतन पर शहीद होने को, रहते है ये आतुर
ऐसे वीर जवानो का, क्या कर लेंगे ये असुर

भेड़ कि खाल पहन लोमड़ी आया है ( A fox has come with lambskin)

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भेड़ कि खाल पहन लोमड़ी आया है
चारो तरफ लुट खसोट मचाया है
सभी जगह जाल बिछाया है
सबको बेवकूफ बनाकर माल खुद खाया है

मुह से मीठी वाणी बोलकर
छल कपट से काम लेता है
भाई बांधव क्या चीज़ है
ये हर किसी को दगा देता है

कई तरह के है चाले चलता
पर सबके सामने है भोला बनता
बहुत खतरनाक है इसका खेल
इसके कर्मो का शक्ल से नहीं है मेल

बड़ी चतुराई से है काम करता
जो इसके खिलाफ हो उसको यह बदनाम करता
अब तो इसको पहचान जाओ
अपनी कौम से इसे दूर भगाओ 

अकेला चल निकला हू

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अकेला चल निकला हू इस राह पर
जानते हुए भी कि मुश्किलों से भरी है मेरी ये डगर

चाह बस एक मंजिल पाने की
हौसला है सब कुछ गवाने की
हर सितम हँस के सह लूँगा
मुह से उफ़ तक न करूँगा

अकेला चल निकला हू इस राह पर
जानते हुए भी कि मुश्किलों से भरी है मेरी ये डगर

अगर साथ न मिला किसीका
तो भी बस बढता चलूँगा
अगर आया कोई तूफ़ान
तो उससे भी डटकर लडूंगा

अकेला चल निकला हू इस राह पर
जानते हुए भी कि मुश्किलों से भरी है मेरी ये डगर

अब तो मैंने लिया है ये ठान
मंजिल पर पहुचने पर ही होगा आराम
कदम बढाकर पीछे न हटूंगा
चाहे जो भी हो अंजाम

अकेला चल निकला हू इस राह पर
जानते हुए भी कि मुश्किलों से भरी है मेरी ये डगर


Monday 16 July 2012

भारत माता की जय

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खून का हर एक कतरा पुकार रही है
भारत माता की जय, भारत माता की जय

है दुश्मन बलवान बहुत
धन भी है उसके पास अकूत
अब तो सोचता हू बस यही
कि करना है इनपर विजय

खून का हर एक कतरा पुकार रही है
भारत माता की जय, भारत माता की जय

है साथ मेरे चंद लोग
पर भीड़ बड़ी है उनकी
पुकार रहा है दिल आज ये
बलिदान का आ गया है समय

खून का हर एक कतरा पुकार रही है
भारत माता की जय, भारत माता की जय

है बैरी को अपने ताकत पर घमंड बड़ी
हो गया है तानाशाह वह पूरी
सामना करने को तैयार हू मै खड़ा
अब तो हो चूका हू मै निर्भय

खून का हर एक कतरा पुकार रही है
भारत माता की जय, भारत माता की जय