सिल लिए हो होठ अपने,
कोने में छुप छुप रोते हो
कायरो सी ज़िंदगी है,
हर जुल्म चुप चुप सहते हो !
सुभाष, भगत और गाँधी की,
पावन धरा में तुमने जन्म लिया,
फिर अन्याय को तुमने क्यों,
अपनी नियति समझ लिया ?
लाशों की तरह जीने से तो,
लड़कर मरना अच्छा है,
कोने में छुप छुप रोते हो
कायरो सी ज़िंदगी है,
हर जुल्म चुप चुप सहते हो !
सुभाष, भगत और गाँधी की,
पावन धरा में तुमने जन्म लिया,
फिर अन्याय को तुमने क्यों,
अपनी नियति समझ लिया ?
लाशों की तरह जीने से तो,
लड़कर मरना अच्छा है,
हालातों से जो लड़ता है,
वही तो वीर सच्चा है !
वही तो वीर सच्चा है !
तटस्थता में ही जीना है तो,
क्यों पहना इंसान का चोला है ?
क्यों पहना इंसान का चोला है ?
घर बैठ कुछ नहीं बदलने वाला,
सड़को पर निकलना अच्छा है !
छाया घना अँधेरा तो क्या
एक जुगुनू भी रौशनी कर जाता है ,
सूरज ना बन पाए तो क्या
दीपक की तरह जलना अच्छा है !
दे जवाब डरपोक मौन को
साहस भरी एक आवाज से ,
इस डरी सहमी ख़ामोशी से
बलिदानी ललकार अच्छा है !
सड़को पर निकलना अच्छा है !
छाया घना अँधेरा तो क्या
एक जुगुनू भी रौशनी कर जाता है ,
सूरज ना बन पाए तो क्या
दीपक की तरह जलना अच्छा है !
दे जवाब डरपोक मौन को
साहस भरी एक आवाज से ,
इस डरी सहमी ख़ामोशी से
बलिदानी ललकार अच्छा है !
अवसर की राह जो तकता है,
लगता नहीं कुछ उसके हाथ ,
लगता नहीं कुछ उसके हाथ ,
राहों में जो नहीं रुकता है ,
उसका जीत तो पक्का है !
उसका जीत तो पक्का है !