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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Thursday 30 August 2012

ये हालात बदलना चाहता हूँ

बहुत सह लिए अन्याय अब, ये हालात बदलना चाहता हूँ
सरफरोशी जो जागी है अब , ये जवानी वतन के नाम करना चाहता हूँ

कर रहे बेईमान, भारत माँ का आंचल मैला रोज
भागीरथी मै नहीं मगर, हर गांव में गंगा बहाना चाहता हूँ

लुट रहे भारत माँ को, अपने ही वतनवाले रोज
लुटती हुई भारत माँ की, आबरू बचाना चाहता हूँ

जागते इंसान कर रहे यहाँ मुर्दों सा व्यवहार
मुर्दे भी लगाए जयघोष के नारे, ऐसी अलख जगाना चाहता हूँ

अब जो जागा हू तो मै, कुछ कर गुजरना चाहता हूँ
लगी है आग जो मेरे सीने में, सबके सीने में लगाना चाहता हूँ  

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