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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Saturday 14 July 2012

एक अजीब सी बेचैनी छाई है

एक अजीब सी बेचैनी छाई है
तेरी जुदाई तन्हाई ले के आई है

डूबा रहता हू तेरी यादों में दिनभर
जीना हो गया है मेरा दुर्भर
जब तक तू मुझसे जुदा रहेगी
तन्हाइयों में डूबा ये फिजा रहेगी

एक अजीब सी बेचैनी छाई है
तेरी जुदाई तन्हाई ले के आई है

तेरी यादें ही मुझे जिंदा रखी है
कभी खुशी तो कभी आँखों में आँसू देती है
तुझे भुलाने कि कोशिश कि मैंने बहुत
पर तू कभी ख्वाब तो कभी याद बनकर हर वक्त साथ रही है

एक अजीब सी बेचैनी छाई है
तेरी जुदाई तन्हाई ले के आई है

आँखें इंतज़ार कर रही है तेरे आने की
दिल भूल नहीं पाया है दर्द तेरे जाने की
अब तो लौटकर आ जा
मेरे दिल को यु इतना न तड़पा

एक अजीब सी बेचैनी छाई है
तेरी जुदाई तन्हाई ले के आई है


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