featured post

एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Sunday 3 June 2012

प्रदुषण (pollution)

बड़ी बड़ी चिमनियों से निकलता ये धुआं
है इंसानों की ज़िंदगी के लिए एक जुआ
धुल उडाती बड़ी गाड़ियां
फेफड़े के लिए है बीमारियाँ
प्रदुषण जो तेजी से बढ़ रहा है
नई नई बीमारियाँ पैदा कर रहा है
वाहनों की संख्या तेज रफ़्तार से बढ़ रही है
लोगो की मौत की नई परिभाषा गढ़ रही है
पेड़ रहे है तेजी से कट
जीवन प्रत्याशा रही है घट
प्रदुषण बढ़ रहा लगातार
फैक्ट्रिया जो खुल रही कई हज़ार
परमाणु उर्जा पे हो रहे हम निर्भर
विकिरण के साथ जीना हो रहा दुर्भर
नित नए हो रहे अविष्कार
ध्वनि प्रदुषण बढ़ा रहे लगातार
फैक्ट्रियो से छोड़े जा रहे अवशिष्ट
मिटटी खो रही अपनी गुण विशिष्ट
कचड़ा जो नदियों में डाला जा रहा
जल प्रदुषण फैला रहा
रोकना है अगर प्रदुषण बढ़ने की गति 
तो उपयोग में लाना होगा अपना मति 
सीमित रखो अपना उपयोग 
मत करो संसाधनों का दुरूपयोग  

7 comments:

  1. a very nice poem

    ReplyDelete
  2. Realy a very nice poem on pullution, we have to learn from this poem that how we can prevent the pollution.

    Mahendra Bhradwwaj
    Lodhi Clolony,
    New Delhi - 110003

    ReplyDelete
  3. Good poem it is! I liked it a lot.

    ReplyDelete
  4. Hillariois poem

    ReplyDelete
  5. Good going, keep it up

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है !