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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Friday 15 June 2012

ज़िन्दगी कुछ अधूरी सी लगती है (Life tends to be incomplete)

ज़िन्दगी कुछ अधूरी सी लगती है
पल पल में न जाने क्यों बहकती है

समझ नहीं आ रहा किसकी तलाश है
क्यों लगता हर समय प्यास है
अँधेरे में रौशनी की तलाश है
तो उजाले में छाया की आस है
ज़िन्दगी कुछ अधूरी सी लगती है
पल पल में न जाने क्यों बहकती है

हमेशा कुछ नया करने की सोचता हु
पर पुरानी गलियों में ही भटकता हु
ज़िन्दगी खाली खाली सी लगती है
ऐसा क्या है जिसको पाने के लिए भटकती है
ज़िन्दगी कुछ अधूरी सी लगती है
पल पल में न जाने क्यों बहकती है

मंजिल मेरे लिए नहीं है
सोचकर रास्ता बदल जाता हु
किस मंजिल को पाने की कोशिश करू
मै समझ नहीं पाता हु
ज़िन्दगी कुछ अधूरी सी लगती है
पल पल में न जाने क्यों बहकती है

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