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एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Thursday 17 May 2012

मेरी कविता(My Poem)

ज़िन्दगी में एक लहर सी उठी है
कुछ नया करने का मन में ठनी है
कविता लिखने का ख्याल मन में आया है
पर दिमाग में हर तरफ अँधेरा छाया है
सोच रहा हु क्या लिखू ?
अपने या देश के बारे में कुछ कहू ?
देश हमेशा ही मुझसे बड़ा है
मन में बहुत से सवाल खड़ा है
महंगाई से जनता हो गई है त्रस्त
नेता और प्रशासन हो गए है पस्त
भ्रष्टाचार चारो ओर फैला है
हो रहा भारत माँ का आंचल मैला है
एक तरफ बेरोजगारी लोगो की जान ले रही है
दूसरी तरफ नेताओ और अफसरों के घर भंडार भरी पड़ी है
किसान कड़ी मेहनत के बाद जो कमाता है
मुनाफाखोर उससे दुगुना ले जाता है
मजदुर अपनी मजदूरी बढाने  के लिए रो रहा है
क्योकि थोड़ी से पैसो से खर्च पूरा नहीं हो रहा है
लेकिन मालिक तो मज़े से सो रहा है

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